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कविता

यथार्थ

महेन्द्र भटनागर


राह का
नहीं है अंत
        चलते रहेंगे हम!
दूर तक फैला
        अँधेरा
नहीं होगा जरा भी कम!
टिमटिमाते दीप-से
अहर्निश
         जलते रहेंगे हम!
साँसें मिली हैं
मात्र गिनती की
अचानक एक दिन
धड़कन हृदय की जायगी थम!
समझते-बूझते सब
मृत्यु को छलते रहेंगे हम!
हर चरण पर
मंजिलें होती कहाँ हैं?
जिंदगी में
कंकड़ों के ढेर हैं
           मोती कहाँ हैं?


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हिंदी समय में महेन्द्र भटनागर की रचनाएँ